"मुसाफिर हूं 💞💞🌹🌹🙏🙏
" मुसाफिर हूं,एक दिन चला जाऊंगा"
मै खुद अपना भी नहीं, कि रुक भी जाऊं।
तुम कहो फिर भी,मै कर न पाऊं।
तुम्ही बताओ तुम्हे,इतना लाचार क्यों बनाऊं,
प्रकृति का हूं मै,खुद का कुछ भी न कर पाऊं ।
मै आया ही हूं,मुसाफिर बनकर,
एक जगह कैसे ठहर जाऊ।
सफर का हूं,खुद को कैसे रोक पाऊं,
अगर चला गया,तो फिर कैसे आऊं।
मै खुद में पूरा ब्रह्माण्ड हूं,अपने अंदर ही प्रेम,क्रोध,लोभ सबको पाऊं,
सब जानते हुए भी,आखिर इसे क्यों न रोक पाऊं।
जब भी जिससे भागू,अंत में अपने आप पर ही ठहर जाऊं।
प्रकृति हमारी सरोवर के पानी जैसा है,
फिर एक जगह कैसे ठहर पाऊं।
शहर बदल लूं,या गांव,
मै अपनी आदतें बदल न पाऊं।
कोशिश करूं,सब भूलकर वापस लौट जाऊं,
वापस जाना बहुत जरूरी है,फिर भी ऐसा कर न पाऊं।
🌹🌹💞💞🙏🙏
Miss Lipsa
26-Aug-2021 06:56 AM
Aye huye super
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Aliya khan
20-Jul-2021 06:38 PM
Nice
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Ranjeet Shankar
22-Jul-2021 02:20 AM
Thanks ji
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